घरेलू कामगारों के माथे पर कोरोनावायरस की वजह से चिंता की लकीरें

घरेलू कामगारों के माथे पर कोरोनावायरस की वजह से चिंता की लकीरें

घरेलू कामगारों के माथे पर कोरोनावायरस की वजह से चिंता की लकीरें

घरेलू कामगारों के माथे पर कोरोनावायरस की वजह से चिंता की लकीरें


सौरभ शर्मा, आदित्य ओझा


Caption: ऐसे में जब देश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है और लोगों को घरों में रहने की सलाह दी जा रही है, देश का एक बड़ा तबक़ा इस पूरी समस्या के बीच काम पर जाने को मजबूर है।


लखनऊ: लखनऊ के पटेल नगर में रहने वाली संगीता सिंह (31) घरों में जाकर झाड़ू-पोछा करने बर्तन साफ़ करने का काम करती हैं वह कोरोनावायरस को लेकर बिल्कुल भी चिंतित नही हैं।


संगीता कहती हैं कि उन्हें यह तो पता है कि कोरोनावायरस एक ख़तरनाक बीमारी है लेकिन वह उन्हें नहीं लगेगी क्योंकि यह बीमारी सिर्फ दो साल से कम उम्र के बच्चों और अस्सी साल से ज़्यादा उम्र के लोगों को ही लग सकती है।


संगीता बिना अपने चेहरे को ढंके और बिना सेनेटाइज़र का इस्तेमाल किए अपना काम पहले की तरह ही कर रही हैं। जब उनसे पूछा गया कि उन्हें यह किसने बताया कि कोरोनावायरस सिर्फ दो साल से कम उम्र के बच्चों और अस्सी साल से ज़्यादा उम्र के लोगों को ही होगा तो उन्होंने बताया कि उन्हें यह जानकारी उनकी सहेली ने दी जो व्हाट्सएप्प इस्तेमाल करती है।


"मुझे अंजलि (संगीता की सहेली) ने बताया कि इस बीमारी से घबराने की ज़रूरत नही है और यह सिर्फ छोटे बच्चों और बूढ़ों को ही होगी। अगर मैं आपके या अन्य लोगो के कहने से काम पर नही जाऊंगी तो मालिक लोग मेरी पगार काट लेंगे और फिर मैं अपने बच्चों को क्या खिलाऊंगी?" संगीता सवाल करती हैं। संगीता के पति प्लम्बर का काम करने है और इस समय उनका काम भी ठीक नही चल रहा है।


"मेरे पति एक तरह के दिहाडी मज़दूर ही हैं, अभी गर्मी इतनी नहीं पड़ रही है जिसकी वजह से उनका काम ठीक से नहीं चल रहा है। घर-घर काम करने से ही हमारे दो बच्चों का पालन-पोषण होता है और अगर हम घर बैठ गए तो हमारे घर का ख़र्च नहीं चल पाएगा," संगीता ने कहा।


कुछ घरों में उन्हें अंदर आने से पहले साबुन से हाथ धोने को कहा गया है लेकिन किसी ने भी छुट्टी नहीं दी बल्कि दो घरो में यह बोल दिया गया कि अगर वह छुट्टी करेंगी तो पैसा कटेगा, संगीता ने बताया।


महंगे मास्क और सेनेटाइज़र


"अभी बाज़ार में एक मास्क 300 रुपए का मिल रहा है और 300 रुपए में मेरे एक हफ़्ते का दाल-चावल आता है तो मैं मास्क कैसे खरीदूं?" संगीता ने कहा।


देश भर में क़रीब 47 लाख लोग घरेलू मदद के रूप में काम करते हैं जिसमे से लगभग 30 लाख महिलाएं हैं।


वही दूसरी तरफ़ रीना त्रिपाठी (24) जो 7 घरों में काम करती हैं वह अपने और अपने परिवार के लिए काफ़ी चिंतित हैं । "मुझे पता है यह इंफ़ेक्शन जान ले लेगा लेकिन मैं लाचार हूं, मेरा बच्चा बहुत छोटा है और मेरे पति दूसरे ज़िले में ड्राइवर का काम करते हैं। मैंने अपनी एक मालकिन से इसके बारे में सब पूछा और उन्होंने मुझे हाथ साफ़ करने के लिए एक नीला पानी दिया है और मेरे लिए उन्होंने हाथ धोने वाला साबुन और मुह ढंकने वाला मास्क कंप्यूटर से मंगाया है। मैंने हर घर में बात की कि अगर मैं कुछ दिन अपने घर में ही रह जाऊं तो सिर्फ़ दो घरों में यह बात मानी गई और बाकी घरों में यह बोल दिया गया कि छुट्टी करने पर पैसा कटेगा जबकि उन्हें कोरोना के बारे में सब पता है और कितना ख़तरा है तब भी," रीना ने कहा।


कईं जगहों पर महिलाओं को पेड छुट्टी दे दी गयी है लेकिन ज़्यादातर घरों में ऐसा नहीं है, लखनऊ में घर-घर काम करने वाली महिलाओं के लिए काम करने वाली संस्था विज्ञान फ़ाउंडेशन के संदीप खरे बताते हैं। संदीप कहते है कि घरों में काम करने वाली महिलाओं को कोरोनावयरस के बारे में बिल्कुल भी पता नहीं है और ज़्यादातर समय बाहर रहने की वजह से इनके ऊपर ज़्यादा ख़तरा मंडरा रहा है।


जानकारी का अभाव


"सरकार को चाहिए कि पहले तो इन लोगों को कोरोनावायरस के संक्रमण के बारे में बताए, सब्सिडी पर मास्क और सेनेटाइज़र दे और इन्हें अल्टरनेटिव चीज़ों के बारे में भी बताया जाए जो कि कम पैसों में बाज़ार में उपलब्ध हो। मेरे हिसाब से सिर्फ़ लखनऊ शहर में ही कम से कम दो लाख ऐसी महिलाएं है जो कि घर-घर जाकर काम करती हैं और ऐसे में आप ख़ुद सोचिए कि यह लोग कितने ख़तरनाक माहौल में हैं और कितनी बड़ी आबादी ख़तरे में है," खरे बताते हैं।


देश में कोरोनावायरस के प्रकोप के बाद से, निजी क्षेत्र के बहुत से कर्मचारियों ने इससे बचाव के उपाय के रूप में घर से काम करना शुरू कर दिया है। लेकिन घरेलू सहायकों के तौर पर काम करने वाले इन लोगों को ना तो कोई छुट्टी मिलती है और ना ही रोज़गार के दूसरे लाभ, ऐसे में काम पर जाना इनकी मजबूरी है।


बैंगलोर के ग्रीनवुड अपार्टमेंट में काम करने वाली पूर्णिमा ने बताया कि वह एक ही अपार्टमेंट के चार घरों में काम करती हैं। "मैं बर्तन साफ़ करती हूं और झाड़ू-पोछा भी लगाती हूं। घर की सफ़ाई मेरी ज़िम्मेदारी है, इसलिए मुझे इस बीमारी का ज़्यादा ख़तरा है," पूर्णिमा ने कहा। "अपार्टमेंट में प्रवेश करते समय सुरक्षा गार्ड हमें हाथों पर सेनेटाइज़र लगाने के लिए कहते हैं जो सोसाइटी (हाऊसिंग) की तरफ़ से दिया जाता है," उन्होंने बताया।


16 मार्च को, बैंगलोर के एक तकनीकी विशेषज्ञ में कोरोनावायरस का संक्रमण पाया गया, इंडिया टूडे की एक रिपोर्ट के अनुसार। उनके संपर्क में उनकी पत्नी और नौकरानी भी थे। इसके कारण इस इलाके के घरेलू सहायकों में भी चिंता है।


इसमें बहुत सी ग़लत जानकारियां भी दी जा रही हैं, जिनमें से एक ज़रिया व्हाट्सएप है। "एक महिला को कोरोनावायरस से प्रभावित होने के हिसाब से मैं बहुत छोटी हूं, यह वायरस केवल बच्चों और बूढ़े लोगों को प्रभावित करता है," 30 साल की एक महिला कहती है। वह कम से कम आठ घरों में काम करती है और दिन में दो बार कम से कम 40 लोगों के संपर्क में आती है।


"मेरे छोटे बेटे ने अपने मोबाइल फ़ोन पर एक होम्योपैथिक दवा के बारे में पढ़ा है, जो हमें कोरोनावायरस से बचा सकती है। हमारे पूरे परिवार ने इसे ले लिया है, इसलिए हमें किसी भी चीज़ के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है," दो घरों में खाना बनाने वाली एक अन्य महिला ने बताया।


यह भी ख़बर है कि मुंबई के घाटकोपर की एक हाउसिंग सोसायटी जिसका एक निवासी कोरोनावायरस से संक्रमित पाया गया है, अब सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहा है, मुंबई मिरर की एक रिपोर्ट के अनुसार। नौकरानियों को उनके दूसरे घरों में बोल दिया गया है कि अगर वह घाटकोपर हाउसिंग सोसाइटी में काम करना जारी रखती हैं, तो उन्हें हटा दिया जाएगा। यहां तक कि हाउसकीपिंग सेवाओं को भी वहां से कचरा इकट्ठा नहीं करने के लिए कहा गया है।


इसके अलावा, उत्तर प्रदेश के नोएडा की हाइड पार्क सोसाइटी, जिसमें पॉज़िटिव कोरोनावायरस का एक मामला है, ने फैसला किया है कि घरेलू कामगारों, आगंतुकों, डिलीवरी बॉयज़़ और विक्रेताओं को सोसाइटी में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार। लोगों में दहशत फैल गई है और यह घरेलू कामगारों और उनकी आजीविका पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।


कुछ घरेलू कामगार भी इनसे बचाव के उपाय कर रहे हैं। "मैं कम से कम सात घरों में बर्तन धोती हूं। मैंने अपने लिए मेडिकल स्टोर से एक मास्क लिया है ताकि मैं संक्रमित न हो जाऊं। मैं घर पर नहीं रह सकती वर्ना मेरा वेतन काट दिया जाएगा," सुमन ने बताया जो कि बहराइच की निवासी हैं। कम आय वाले इस समूह के लिए सेनेटाइज़र और मास्क ख़रीदना एक बहुत मुश्किल का काम है। बाज़ार में उपलब्धता की कमी के कारण मास्क और सेनेटाइज़र की कीमतें भी बढ़ रही हैं।


"घरेलू कामगारों को काम पर आने से रोकना ठीक है, यहां तक कि घर पर एक बच्चे के साथ काम करने वाले माता-पिता के रूप में, यह सबसे मुश्किल है लेकिन ऐसा करने की ज़रूरत है। मैं पेड लीव दे रही हूं। जितना हम वहन कर सकते हैं, हमें इस कठिन परिस्थिति में उनकी मदद करनी चाहिए। हम देख सकते हैं कि कर्म पहले से ही कोरोना के रूप में हमारे साथ कैसे खेल रहा है”, बैंगलोर की ग्रीनवुड सोसाइटी में रहने वाली अनुभा शुक्ला ने बताया।


रोज़ी-रोटी का संकट


अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति उत्तर प्रदेश की कार्यकर्ता सीमा राणा, जो कि इन घरेलू कामगार महिलाओं के मुद्दे उठाती हैं, कहती हैं कि इन महिलाओं को पहले तो सरकार की तरफ़ से कुछ न कुछ आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए जिससे यह लोग घर मे रहकर अपने आपको इस संक्रमण से बचा सके। साथ ही साथ लोगों को भी आगे आकर इन्हें पेड लीव देनी चाहिए जिससे इनके घर का ख़र्च चल सके और संक्रमण को भी कंट्रोल किया जा सके।


हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने दिहाड़ी पर काम करने वाले मज़दूरों के बैंक खातों में एक तय रक़म जमा करने का फ़ैसला किया है। मगर यह साफ़ नहीं है कि उसमें घरेलू कामगारों को शामिल किया गया है या नहीं। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में 20 मार्च तक 23 लोग कोरोनावायरस से संक्रमित पाए गए है। हमारे इंटरएक्टिव मॉनिटर पर राज्य-वार आंकड़े यहां देखे जा सकते हैं: https://corona.health-check.in


(आदित्य और सौरभ, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं और 101Reporters.com के सदस्य हैं।)

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